Tejashwi Yadav: चुनाव आयोग के खिलाफ उठ रही आवाज अब चुनाव बहिष्कार तक पहुंच गई है। बिहार विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया है कि महागठबंधन अब चुनाव बहिष्कार पर विचार कर रहा है। सांसद संजय यादव, पप्पू यादव समेत अन्य तमाम विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के इस कॉल को समर्थन दे रहे हैं। बिहार में जारी SIR के खिलाफ लगातार आवाज उठती रही है। अंतत: Tejashwi Yadav ने चुनाव बहिष्कार का जिक्र कर देश की सियासत में नया मोड़ ला दिया है। सवाल है कि यदि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष बहिष्कार का ऐलान करता है, तो देश की सियासत पर इसका क्या असर हो सकता है? क्या ऐसी स्थिति में लोकतंत्र की साख खतरे में आएगी? तो आइए सभी सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
बिहार में जारी SIR के खिलाफ Tejashwi Yadav, पप्पू यादव समेत कई नेताओं का खुला ऐलान!
विपक्ष के तमाम नेताओं ने साफ कर दिया है कि यदि चुनाव आयोग SIR को लेकर पुनर्विचार नहीं करता, तो चुनाव बहिष्कार ही उनके पास एकमात्र विकल्प है। मीडिया से बात करते हुए तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव बहिष्कार का जिक्र किया है। उनका कहना है कि “‘इस पर भी चर्चा हो सकती है। हम देखेंगे कि जनता क्या चाहती है और सभी की क्या राय है।”
सांसद पप्पू यादव ने Tejashwi Yadav से थोड़ी असहमति जताते हुए कहा है कि “यदि उन्होंने ये बात कही है तो उन्हें स्वतंत्र बात करनी ही चाहिए। लेकिन हमारा विश्वास सुप्रीम कोर्ट के साथ है और हमारा विश्वास इस सदन के साथ हैं। हर कीमत पर अगर सदन में हमारी बात दबाई जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट में तो नहीं दबाई जाएगी ना। जब सारे रास्ते बंद हो जाएंगे तब तेजस्वी जी ने जो कहा है वह अंतिम प्रक्रिया है। उससे पहले हम सब लोग मिलकर दोनों सदनों से इस्तीफा देकर और सत्ता पक्ष को अकेले सदन चलाने दें।”
इसके अलावा राज्यसभा सांसद मनोज झा और संजय यादव समेत विपक्ष के तमाम नेताओं ने Tejashwi Yadav से सहमति जताते हुए चुनाव बहिष्कार की बात कही है।
बिहार में हुआ चुनाव बहिष्कार तो देश की सियासत पर क्या होगा असर?
इसका जवाब जानने के लिए अतीत के पन्ने पलटने होंगे। चुनाव बहिष्कार की बात करें तो यदि Tejashwi Yadav के नेतृत्व वाला महागठबंधन बिहार में ऐसा करता है, तो ये बहिष्कार का कोई पहला मामला नहीं होगा। इससे पूर्व भी कश्मीर से पूर्वोत्तर तक में चुनाव बहिष्कार के मामले सामने आ चुके हैं। इसकी शुरुआत 1953 से 1972 तक कश्मीर में हुई जब सभी चुनावों में नेशनल कॉफ्रेंस ने हिस्सा नहीं लिया। इसके बाद 1996 के संसदीय चुनावों में भी नेशनल कॉफ्रेंस ने बहिष्कार किया। फिर 1999 J&K विधानसभा चुनाव में अलगाववादी संगठनों ने बहिष्कार का ऐलान किया था। इससे इतर 1989 के मिजोरम विधानसभा चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट ने बहिष्कार किया जिसके बाद कांग्रेस राज्य की सभी 40 सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी।
इससे ये स्पष्ट है कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा चुनाव बहिष्कार के ऐलान से चुनावी प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता है, बशर्ते तरीका वैद्य हो। हां, ये जरूर है कि बहिष्कार का ऐलान जनता के बीच संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग के प्रति संदेह का भाव जागृत कर सकता है जिसका असर मतदान प्रतिशत पर पड़ेगा। लेकिन बहिष्कार कॉल से चुनाव टलने या रुकने की संभावना ना बराबर है। फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कि Tejashwi Yadav के नेतृत्व में महागठबंधन क्या रुख अपनाता है।