Uniform Civil Code: उत्तराखंड इन दिनों देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा में है। यह कहना अनुचित होगा कि यह सब अचानक हुआ है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। विधानसभा चुनाव के बाद से ही चर्चा थी कि धामी सरकार Uttarakhand में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है।
बहरहाल पहाड़ों की गोद में बसे उत्तराखंड में UCC लागू हो चुका है। इस कानून के मुताबिक किसी भी व्यक्ति का धर्म या समुदाय कोई भी हो। यूसीसी सभी नागरिकों पर लागू होती है। Uniform Civil Code व्यक्तिगत मामलों जैसे शादी, तलाक, गोद लेना, विरासत आदि से जुड़े सभी मामलों में एक समान नियम लागू करती है। हालांकि इनमें कुछ मुद्दे उभर कर सामने आ रहे हैं, जिन पर बहस शुरू हो गई है।
इन अधिकारियों की जिम्मेदारियां
आपको बता दें कि Uttarakhand समान नागरिक संहिता लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। इसके साथ ही इस कानून के लागू होने के बाद राज्य की सामाजिक व्यवस्था में बड़े बदलाव होने की उम्मीदें हैं। इनमें विवाह, तलाक आदि मामलों में UCC की धारा कारगर साबित होगी। उत्तराखंड में Uniform Civil Code को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सब डिविजनल रजिस्ट्रार और ग्राम पंचायत विकास अधिकारी को सब रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी दी गई है।
जबकि नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं में संबंधित सब डिविजनल रजिस्ट्रार के अलावा अधिशासी अधिकारी सब रजिस्ट्रार का कार्यभार संभालेंगे। इसी तरह नगर निगम क्षेत्र में नगर आयुक्त रजिस्ट्रार और कर निरीक्षक को सब रजिस्ट्रार की शक्ति दी गई है। वहीं, कैंटोनमेंट क्षेत्र में संबंधित सीईओ रजिस्ट्रार और रेजीडेंट मेडिकल ऑफिसर या सीईओ द्वारा अधिकृत अधिकारी सब रजिस्ट्रार की श्रेणी में होंगे। जो सचिव स्तर का अधिकारी और पंजीयन महानिरीक्षक बताया जा रहा है।
ये है Uniform Civil Code में प्रतिबंधित
मालूम हो कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में लिव-इन रिलेशनशिप, लिव-इन समाप्ति, तलाक, विवाह पंजीकरण, वसीयत आधारित उत्तराधिकार आदि को लेकर समान कानून बनाए गए हैं। लेकिन इन सबके बीच कुछ मामलों में प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। हालांकि इसकी सहमति के लिए धर्मगुरु की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा। इसके बाद भी Uniform Civil Code प्रक्रिया की सहमति के लिए विभागीय अधिकारियों के अंतिम आदेश ही मान्य होंगे। इसे ऐसे समझें, Uttarakhand में कोई महिला अपने परदादा, सौतेले परदादा, बेटी के बेटे की बेटी के पति, भतीजे या चाचा जैसे रिश्तेदारों से तब तक संबंध स्थापित या बना नहीं सकती, जब तक उसे धर्मगुरु की मंजूरी न मिल जाए।
वहीं, अगर मंजूरी मिल भी जाती है, तो इसके बाद रजिस्ट्रार को अपने स्रोतों से या समुदाय के प्रमुखों या धर्मगुरुओं से यह सत्यापित करना होगा कि क्या रीति-रिवाज और प्रथाएं वास्तव में समान संबंध रखने वाली महिला और पुरुष के बीच विवाह की अनुमति देती हैं। अगर रजिस्ट्रार को लगता है कि यह पंजीकृत व्यक्तियों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देता है, तो वह लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकरण के लिए खारिज कर देगा।