गुरूवार, जुलाई 25, 2024
होमधर्मShanivaar Vrat Katha : आज पढ़ें शनि देव व्रत कथा, सभी कष्ट...

Shanivaar Vrat Katha : आज पढ़ें शनि देव व्रत कथा, सभी कष्ट हो जाएंगे दूर

Date:

Related stories

Shanivaar Vrat Katha : शनिवार को शनि देव का दिन माना जाता है। इस दिन का बहुत महत्व है। हर शनिवार शनि देव की कथा पढ़नी चाहिए इससे आपकी जिंदगी के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। शनि देव व्रत कथा(Shanivaar Vrat Katha) में शनि देव के व्रत का महत्व और फल का वर्णन होता है। यह एक प्रमुख कथा है जो शनि देव के पूजन से जुड़ी है। आइए जानें Shanivaar Vrat Katha ।

Shanivaar Vrat Katha

एक समय की बात है। सभी 9 ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? को लेकर विवाद हो गया। वे सभी ग्रह इंद्र देव के पास गए. इंद्र देव भी इसका निर्णय करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास भेजा क्योंकि वे एक न्यायप्रिय राजा थे।

सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपने विवाद के बारे में बताया। राजा विक्रमादित्य ने सोच विचार के बाद नौ धातु स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से सिंहासन बनवाया और उनको क्रम से रख दिया। उन्होंने सभी ग्रहों से इस पर बैठने को कहा। साथ ही कहा कि जो सबसे बाद में बैठेगा, वह सबसे छोटा ग्रह होगा। लोहे का सिंहासन सबसे अंत में था, जिस वजह से शनि देव सबसे अंत में बैठे। इस वजह से शनि देव क्रोधित हो गए।

उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा कि तुमने जानबूझकर ऐसा किया है। तुम जानते नहीं हो कि जब शनि की दशा आती है तो वह ढाई से सात साल तक होती है। शनि की दशा आने से बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश हो जाता है। अब तुम सावधान रहना।

समय गुजरता गया और राजा की साढ़ेसाती आ गई। तब शनि देव घोड़ों का सौदागर बनकर राजा के राज्य में गए। उनके साथ अच्छे नस्ल के बहुत सारे घोड़े थे। जब राजा को सौदागर के घोड़ों का पता चला तो तो उन्होंने घोड़े खरीदने का आदेश दिया। कई अच्छे घोड़े खरीदे गए, इसके अलावा सौदागर ने उपहार स्वरुप एक सर्वोत्तम नस्ल के घोड़े को राजा की सवारी हेतु दिया।

राजा विक्रमादित्य जैसे ही उस घोड़े पर बैठे वह जंगल की ओर भागने लगा। जंगल के अंदर पहुंच कर वह गायब हो गया। अब राजा का बुरा समय शुरू हो गया। भूख-प्यास की स्थिति में राजा जंगल में भटकते रहे। अचानक उन्हें एक ग्वाला दिखाई दिया, जिसने राजा की प्यास बुझाई। राजा ने प्रसन्नता में उसे अपनी अंगूठी देकर नगर की तरफ चले गए। वहां एक सेठ की दूकान पर पहुंच कर उन्होंने जल पिया और अपना नाम वीका बताया। भाग्यवश उस दिन सेठ की खूब आमदनी हुई। सेठ खुश होकर उन्हें अपने साथ घर लेकर गया।

सेठ के घर में खूंटी पर एक हार टंगा था, जिसको खूंटी निगल रही थी। कुछ ही देर में हार पूरी तरह से गायब हो गई। सेठ वापस आया तो हार गायब था। उसे लगा की वीका ने ही उसे चुराया है। सेठ ने वीका को कोतवाल से पकड़वा दिया और दंड स्वरूप राजा उसे चोर समझ कर हाथ-पैर कटवा दिया। अंपग अवस्था में उसे नगर के बाहर फेंक दिया गया। तभी वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसको वीका पर दया आ गई। वे वीका को बैलगाड़ी में बैठाकर आगे चले गए।

फिर कुछ दिनों बाद राजा की शनि की दशा खत्म हो गई। वर्षा ऋतु आने पर वीका मल्हार गए रहे थे, तभी नगर की राजकुमारी ने मन में ठान लिए की जो ये मल्हार गा रहा है मैं उसी से शादी करूंगी। जब लाख समझाने पर राजकुमारी नहीं मानी, तब राजा ने उस तेली को बुलावा भेजा और वीका से विवाह की तैयारी करने के लिए कहा गया।

वीका से राजकुमारी का विवाह हो गया। एक दिन वीका के स्वप्न में शनि देव ने आकर कहा कि देखा राजन तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। राजा ने क्षमा मांगते हुए हाथ जोड़कर कहा कि हे शनि देव! जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ऐसा दुख मत देना। शनि देव इस विनती को मान गये और कहा कि मेरे व्रत और कथा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। जो भी नित्य मेरा ध्यान करेगा उसकी सारी मनोकामना पूरी हो जाएगी। शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए।

जब सेठ को पता चला कि मीका तो राजा विक्रमादित्य हैं, तो उसने उनका आदर सत्कार किया और अपनी बेटी श्रीकंवरी से उनका विवाह कर दिया। इसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दो पत्नियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ अपने राज्य लौट आए, जहां पर उनका स्वागत किया गया। राजा विक्रमादित्य ने कहा कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था, लेकिन वे तो सर्वश्रेष्ठ हैं। तब से राजा के राज्य में शनि देव की पूजा और कथा रोज होने लगी।

देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘DNP INDIA’ को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOKINSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।   

Latest stories