Donald Trump: डोनाल्ड ट्रंप कल यानि कल यानि 20 जनवरी 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपित पद की शपथ लेंगे। उनके नेतृत्व में अमेरिका एक नए कूटनीतिक युग में प्रवेश कर रहा है। ‘अमेरिका फर्स्ट’ के एजेंडे के तहत ट्रंप का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय संलिप्तता को सीमित करना, सुरक्षा की जिम्मेदारी में सहयोगियों की भागीदारी बढ़ाना, और व्यापार घाटे को कम करके अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देना है। यह दृष्टिकोण दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगियों के साथ संबंधों को फिर से परिभाषित कर सकता है और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ कूटनीतिक रणनीतियों को नए आयाम दे सकता है।
कैसी रह सकती है सहयोगियों के प्रति Donald Trump की व्यावसायिक नीति
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में सहयोगी देशों के साथ संबंधों को आर्थिक दृष्टिकोण से परखने का संदेश दिया है। दक्षिण कोरिया जैसे देशों से अमेरिका में तैनात सैनिकों के लिए अधिक वित्तीय योगदान की मांग उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। Donald Trump ने दक्षिण कोरिया को ‘मनी मशीन’ करार देते हुए अपने इरादे साफ कर दिए हैं। इसी तरह, NATO सदस्यों को रक्षा बजट में GDP का 5% आवंटित करने की सलाह उनके विचारों को दर्शाती है। यह बदलाव सहयोगियों के बीच उनके कूटनीतिक मॉडल को लेकर चिंताएं बढ़ा रहा है। ट्रंप द्वारा नियुक्त किए गए प्रमुख पदाधिकारी भी उनके आर्थिक और सुरक्षा संबंधी दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की रणनीति पर कार्यरत हैं।
Donald Trump की टैरिफ और आर्थिक प्राथमिकताएं
डोनाल्ड ट्रंप का व्यापार एजेंडा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को बदलने वाला है। उनकी सरकार सभी आयातों पर 10–20% टैरिफ लगाने और चीनी उत्पादों पर 60% तक जुर्माना लगाने की योजना बना रही है। इन नीतियों का उद्देश्य व्यापार असंतुलन को सुधारना और अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा देना है।
उत्तर कोरिया के प्रति ट्रंप की कूटनीति
उत्तर कोरिया के साथ Donald Trump का कूटनीतिक रवैया उनके कार्यकाल की प्रमुख पहचान रहा है। किम जोंग-उन के साथ उनकी ऐतिहासिक मुलाकातें वैश्विक सुर्खियों में रहीं, लेकिन 2019 के हनोई शिखर सम्मेलन के विफल होने के बाद बातचीत में ठहराव आ गया। अपने नए कार्यकाल में ट्रंप ने उत्तर कोरिया के साथ बातचीत को पुनर्जीवित करने का संकेत दिया है। हाल ही में उन्होंने उन विशेषज्ञों को नियुक्त किया है, जो पहले उत्तर कोरिया के साथ वार्ता में शामिल रहे हैं। हालांकि, रूस पर बढ़ती निर्भरता के कारण उत्तर कोरिया की फिर से बातचीत करने की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।