Tuesday, May 20, 2025
Homeख़ास खबरेंShaheed Diwas: भगत सिंह और लाहौर षडयंत्र केस की वो बातें… जिनसे...

Shaheed Diwas: भगत सिंह और लाहौर षडयंत्र केस की वो बातें… जिनसे दुनिया आज तक अनजान रही, इन्हें जानकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खून खौल उठेगा

Date:

Related stories

Shaheed Diwas: भारत में 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की फांसी की याद में मनाया जाता है। जिन्हें 1931 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के लिए लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। Bhagat Singh का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गाँव में हुआ था, जो अब वर्तमान पाकिस्तान में फ़ैसलाबाद का हिस्सा है।

वे एक वीर क्रांतिकारी थे जिन्हें 1931 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के लिए सिर्फ़ 23 साल की उम्र में फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह के विचारों ने देश भर के देशभक्तों को हमेशा प्रेरित किया है और आगे भी करते रहेंगे। Shaheed Diwas में, आइए भगत सिंह और लाहौर षडयंत्र केस के बारे में जानें।

भगत सिंह और लाहौर षडयंत्र केस का मुकदमा

  • लाहौर षडयंत्र केस से पहले भी भगत सिंह को गिरफ्तार किया गया था। बीबीसी की एक रिपोर्ट में दुर्गा दास के हवाले से लिखा जाता हैं कि, ”8 अप्रैल,1929 को जैसे ही अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल सेफ़्टी बिल पर अपनी रूलिंग देने खड़े हुए Bhagat Singh ने असेंबली के फ़र्श पर बम लुढ़का दिया। मैं पत्रकारों की गैलरी से बाहर निकल कर प्रेस रूम की तरफ़ दौड़ा। मैंने एक संदेश डिक्टेट कराया और एपीआई के न्यूज़ डेस्क से कहा कि वो इसे लंदन में रॉयटर और पूरे भारत में फ़्लैश कर दें। इससे पहली कि मैं फ़ोन पर और विवरण देता, फ़ोन लाइन डेड हो गई। पुलिस वालों ने तुरंत असेंबली का मुख्य द्वार बंद कर दिया। मेरे सामने ही भगत सिंह और बटुकेशवर दत्त को हिरासत में लिया गया।”

  • एक अन्य रिपोर्ट में कहा जाता है कि भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंके गए पर्चे में लिखा था, “बहरे लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज की जरूरत होती है।” इसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुंचाना नहीं था। यह केवल उस समय भारतीय संसद के “दिखावे” के बारे में बात करना था। सिंह और दत्त दोनों ने गिरफ्तारी दी और उन्हें उनके कार्यों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

  • कहा जाता है कि भगत सिंह और बटुकेशवर दत्त हर क़ीमत पर यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके फेंके गए बमों से किसी का नुक़सान न हो। ट्रेड डिस्प्यूट बिल जिसमें मज़दूरों द्वारा की जाने वाली हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगा दी गई थी। इस बिल में सरकार को संदिग्धों को बिना मुक़दमा चलाए हिरासत में रखने का अधिकार दिया जाना था। जिसके खिलाफ में Bhagat Singh और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने काउंसिल हाउस में अपना विरोध जताया था।

  • लाहौर षडयंत्र मामले के सिलसिले में भगत सिंह को फिर से गिरफ्तार किया गया। दिसंबर 1928 में, Bhagat Singh और राजगुरु ने लाहौर में 21 वर्षीय ब्रिटिश अधिकारी जॉन पी सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी, जो गलत पहचान का मामला निकला। योजना एक महीने पहले साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय की मौत में उनकी भूमिका के लिए वरिष्ठ ब्रिटिश अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की थी।

  • वायसराय इरविन ने लाहौर षडयंत्र मामले में सुनवाई में तेजी लाने के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण का गठन किया। इस मुकदमे की भारत और ब्रिटेन दोनों ने ही अन्यायपूर्ण करार देते हुए कड़ी निंदा की गई थी। इसके बावजूद 7 अक्टूबर, 1930 को न्यायाधिकरण ने 300 पन्नों का फैसला सुनाया गया था। जिसमें हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के तीन सदस्यों का नाम था। इनमें Bhagat Singh, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को मौत की सजा सुनाई गई। इसके बाद उन्हें 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई।

ये भी पढ़ें: PM Modi की दुनिया में बढ़ती साख! S Jaishankar ने कहा हम Russia-Ukraine ही नहीं… Israel-Iran से भी कर सकते हैं Engage

Rupesh Ranjan
Rupesh Ranjanhttp://www.dnpindiahindi.in
Rupesh Ranjan is an Indian journalist. These days he is working as a Independent journalist. He has worked as a sub-editor in News Nation. Apart from this, he has experience of working in many national news channels.

Latest stories