रविवार, अप्रैल 28, 2024
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Euthanasia: इच्छामृत्यु क्या है? और क्या हमे इसे अपनाना चाहिए, जानें भारत में इसे लेकर क्या है कानून

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Euthanasia: माना जाता है कि जीवन और मृ्त्यु भगवान के हाथ में होता है। लेकिन सांइस जैसे जैसे बढ़ रहा है, इंसान होनी को वश में करने कि कोशिश कर रहा है। आए दिन नए-नए शोध इस बात का प्रमाण है। आज हम इस लेख के माध्यम से इच्छामृत्यु के बारे में बात करेंगे, कि इच्छामृत्यु क्या है? क्या यह भारत में वैध है। कई देशों ने इच्छामृत्यु को कानून के रूप में भी लागू किया है।

इच्छामृत्यु क्या है?

इच्छामृत्यु का मतलब होता है कि किसी के जीवन को समाप्त करना। आपको बता दें कि आमतौर पर पीड़ा से राहत पाने के लिए डॉक्टर कभी-कभी इच्छामृत्यु तब देते हैं जब ऐसे लोगों द्वारा इसका अनुरोध किया जाता है जो लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं और बहुत दर्द में होते है। यह एक जटिल प्रक्रिया है और इसमें कई बिंदुओं पर ध्यान देना शामिल है। आपको बताते चले कि इच्छामृत्यु दो तरह से दी जाती है। पहली- एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी- पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु। एक्टिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति को डॉक्टर जहरीली दवा या इंजेक्शन देते है। ताकि उस व्यक्ति की मौत हो जाए। वहीं पैसिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति के इलाज को रोक दिया जाता है। उसकी दवाएं बंद कर दी जाती है। ताकि वह आसानी से अपना शरीर त्याग सके।

इन देशों में इच्छामृत्यु है लीगल

बता दें कि नीदरलैंड ही दुनिया का पहला देश है जिसने दुनिया में पहली बार इच्छामृत्यु को कानूनी अनुमति दी है। इसके अलावा बेल्जियम ने 2002 में इच्छामृत्यु बनाया। लक्जमबर्ग ने 2009 में इच्छामृत्यु कानून को अनुमति दी थी। इसके अलावा कनाडा ने 2016 में मौत के लिए चिकित्सीय सहायता को वैध बनाया। गौरतलब है कि कोलंबिया में भी इच्छामृत्यु को कानूनी रूप से वैध करार दिया गया। इसके साथ ही स्पेन, और न्यूजीलैंड ने 2021 जनमत संग्रह के बाद ऐसे रोगियों के लिए इच्छामृत्यु को वैध बना दिया जिसकी प्राकृतिक रूप से मृत्यु छह महीने के अंदर निश्चित है।

क्या इच्छामृत्यु भारत में लीगल है?

आपको बता दें कि भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु’ को मंजूरी दे दी थी। हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी कर दी थी। भारत में अब भी इच्छामृत्यु का प्रोसेस काफी जटिल है। गौरतलब है कि भारत में सिर्फ पैसिव यूथेनेशिया इच्छामृत्यु की इजाजत है। इसका मतलब यह है कि डॉक्टर या कोई और मरने में मदद नहीं कर सकता, सिर्फ इलाज बंद कर दिया जाएगा। पेसिव यूथनेसिया की इजाजत भी तभी दी जा सकती है, जब मरीज को लाइलाज बीमारी हो और उसका जिंदा बच पाना नामुमिकन हो। तभी इसकी मंजूरी दी जाती है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार को कानून भी बनाना चाहिए ताकि गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज शांति से मर सके।

सुप्रीम कोर्ट की इच्छामृत्यु पर क्या थी प्रतिक्रिया

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इच्छामृत्यु को अनुमति दे दी थी। हालांकि कोर्ट ने सरकार को कानून बनाने के लिए कहा था। कोर्ट ने सिर्फ पेसिव यूथनेसिया को ही इजाजत दी थी। जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पांच जजों की पीठ ने इसपर सुनवाई की थी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट मे 9 मार्च 2018 को ‘इच्छामृत्यु’ की मंजूरी दी थी। कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस तरह व्यक्ति को जीने का अधिकार है उसी तरह गरिमा से मरने का भी अधिकार है।

किसके लिए है इच्छामृत्यु

बता दें कि इच्छामृत्यु कानून उस व्यक्ति के लिए बनाया गया है। जो किसी ऐसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है, जिसका इलाज संभव नही है। वहीं इस बीमारी में व्यक्ति के लिए असहनीय दर्द या कष्ठ उठाना पड़ता है। हालांकि इच्छामृत्यु की प्रक्रिया काफी जटिल है।

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